जब हम वृंदावन की यात्रा करते है, तो मदन मोहन मंदिर के नाम से एक मंदिर प्राचीन मंदिर के बारे मे सुनते हैं। वृंदावन में स्थित की है एक वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। पुरातनता क्या आधार पर यह मंदिर शरीफ गोविंद देव जी के मंदिर के बाद आता है। इस मंदिर के निर्माण के समय और शिल्पपियो के बारे मे बहुत काम जानकारी प्राप्त हैं। इस मंदिर की स्थापना, वृंदावन के सबसे पहला मंदिर के रुप मे मानी जाता है। वर्तमान समय में भगवान मदन मोहन की प्रतिमा इस मंदिर में नहीं है। मुगल शासक औरंगजेब के आक्रमण के दौरान कई मंदिरों को तोड़ा गया इसीलिए मदन मोहन जी की प्रतिमा को सुरक्षित रखने के लिए राजस्थान ले जाया गया और आज इस स्थान पर उनकी मूर्ति की प्रकृति की स्थापना की गई है। जिसकी पूजा की जाती है जबकि मूल प्रतिमा आज भी राजस्थान के करौली जिले में स्थित है। बताया जाता है कि मदन मोहन मंदिर में मंगला आरती साल में एक बार कार्तिक महीने में होती है। जो कि लगभग अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच में आता है। यह मंदिर इतना विस्तृत नहीं है। छोटे स्वरूप में स्थित है। लेकिन इस मंदिर पर कारीगरों द्वारा की गई नकाशा बेहद प्राचीन एवं अद्भुत सौंदर्य को प्रदर्शन करती है। इस मंदिर में प्रवेश करने के द्वार, जिस कचहरी कहा जाता था। औरंगजेब के आक्रमण के बाद इस द्वार को बंद कर दिया गया था। वर्तमान में इस मंदिर का यह द्वार आज ही बंद है। आज के समय इस मंदिर में अंदर जाने के लिए सीढ़ियों के माध्यम से जाया जाता है। यह मंदिर एक टीले के ऊपर बनाया गया है। यहां विशालकायिक नाग के फन पर श्री कृष्ण भगवान चरणाघात कर रहे हैं। इस मंदिर की स्थापना के दौरान लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। इस मंदिर की स्थापना किस जगह पर हुई है। ऐसा बताया जाता है कि इस स्थान पर एक विस्तृत जंगल था यह मंदिर कालियादेह घाट के समीप एक टीले पर बनाया गया है। यह काफी प्राचीन है। पुराने स्रोत के आधार पर जो वर्तमान में आज हम इस मंदिर के समीप रोड देखते हैं। उस रोड के पास यमुना नदी बहती थी। वर्तमान में पानी का जलस्तर कम होने के कारण यहां यमुना नदी कुछ दूरी पर दिखाई देता है। परंतु जब हम इस मंदिर से देखते हैं। तो यमुना जी इस साफ तौर पर दिखाई देती है।

श्री मदन मोहन मंदिर की प्रतिमा से जुड़ी जानकारी
इस मंदिर का निर्माण श्री कृष्ण जी के प्रपौत्र वज्र नाथ जी के द्वारा कराया गया था। इसके बाद वज्र नाथ जी की वृद्धावस्था में यह प्रतिमा मथुरा के एक चौबे जी को दे दी गई चौबे जी की पत्नी इस प्रतिमा की सेवा बड़े ही मन से किया करती थी। उस समय वृंदावन एक घना जंगल हुआ और जो कि लगभग 3 तरफ से यमुना नदी से घिरा होता था। श्री लक्ष्मणदास के भक्त-सिन्धु में इसकी कथा का प्रदर्शन किया गया है। यह एक भक्त-माल का आधुनिक संस्करण का एक सुंदर स्वरूप है। गोस्वामीपाद रूप और सनातन को गोविन्द जी की यह मूर्ति नन्दगाँव से ही प्राप्त हुई थी। यहाँ एक गोखिरख में से इस मूर्ति को खोदकर इसे निकाला गया था, इससे ही इसका नाम गोविन्द हुआ। वहाँ से लाकर गोविन्द जी को ब्रहृकुण्ड के वर्तमान मंदिर की प्रतिमा के स्थान पर रखा गया था। इसके बाद चैतन्य महाप्रभु ने भगवान श्री कृष्ण जी की जीवन लीला से जुड़े स्थलों की खोज की और इसके उपरांत वृंदावन का विकास हुआ। बताया जाता है। कि टीले पर चैतन्य महाप्रभु के एक शिष्य सनातन गोस्वामी जी अपनी कुटिया बनाकर रहते थे। उस स्थान का नाम पशुकन्दन घाट रख गया। क्योंकि ये मार्ग इतना ऊँचा-नीचा और खराब स्थिति में था। कि व्यक्ति तो दूर की कल्पना है। कोई पशु भी नहीं जा सकता था।
इस पर ही एक कथन अंकित है।……
‘निचाऊ-ऊँचाऊ देखी विशेषन पशुकन्दन वह घाट कहाई, तहाँ बैठी मनसुख लहाई।’,,,,,
सनातन गोस्वामी जी हमेशा भिक्षा मांगने के लिए वृंदावन जाते थे। चौबे जी की पत्नी के वृद्ध अवस्था के समय मे मदन मोहन जी की प्रतिमा को सनातन गोस्वामी जी को दे दिया तथा सनातन गोस्वामी जी ने मदन मोहन जी की प्रतिमा को अपनी कुटिया में आकर रख लिया तथा उनकी प्रतिदिन पूजा याचना करने लगे।
मदन मोहन मंदिर की निर्माण
मदन मोहन मंदिर मदन मोहन के निर्माण से जुड़ी एक विचित्र कहानी है। उस समय रामदास खत्री उर्फ कपूरी नाम का पंजाब का व्यापारी दिल्ली से मथुरा व्यापार करने के लिए आते थे। एक दिन उनकी नाव इसी टीले के पास आकर यमुना नदी के किनारे आकर फस गई। 3 दिन तक काफी प्रयास करने के बाद वह नाव नहीं निकली। चारों तरफ जंगल था। व्यापारी को कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी। कुछ समय बाद इधर-उधर प्रयास करने के उपरांत इसी टीले पर एक स्थान से धुआं उठता हुआ। उन्हें दिखाई देता है। जोकि सनातन गोस्वामी जी की रसोई से आ रहा था। फिर वह व्यापारी सनातन गोस्वामी जी से जाकर मिला सनातन गोस्वामी जी से व्यापारी ने नाव को निकालने की प्रार्थना कि सनातन गोस्वामी जी कहते हैं। की मेरे पास तो कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है। पर मेरा एक 5 साल का बालक यमुना नदी के किनारे खेल रहा है। आप जाओ और उन्हीं से प्रार्थना करो। वह अवश्य तुम्हारी मदद करेगा। वह यमुना नदी किनारे जाता है और मदन मोहन जो 5 वर्ष में बच्चे के रूप में थे उनसे प्रार्थना करता है। मदन मोहन जी व्यापारी से कहते हैं। कि इसमें मेरा क्या फायदा है। व्यापारी कहता है, कि भगवान मेरा जहाज तो पानी में डूब गया है और मेरा सारा सामान भी खराब हो गया है। मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं। तब मदन मोहन जी कहते हैं। यह जाओ देखो जहाज में सारा सामान व्यवस्थित रूप में रखा होता है। इसके बाद बहुत घनी बारिश हुई इसके बाद उस व्यापारी के नाव यमुना नदी में तैरने लगी है। तभी उस व्यापारी ने कहा कि इस व्यापार में नाव के रखे सामान की बिक्री से जितनी भी आमदनी होगी। वह इससे मदन मोहन जी के मंदिर का निर्माण कराएगा। इसके बाद सन 1516 में से सन 1627 के बीच उसमें व्यापारी के द्वारा वइस मंदिर का निर्माण कराया गया। श्री कृष्ण भगवान के अनेकों नाम मे से मदन मोहन भी एक प्रिय नाम में से एक है। वर्तमान में इस मंदिर की सेवा श्री दीनबंधु दास जी के द्वारा की जाती है। उनके द्वारा भी बताया गया है। कि यह मंदिर वृंदावन का सबसे प्राचीन मंदिर है। जिस टीले पर यह मंदिर बना हुआ है। उसे द्वादश टीले के नाम से जाना जाता है।
मदन मोहन जी को चटोरे मदन मोहन जी भी कहा जाता है। इसके पीछे भी मान्यता जोड़ी है, कहा जाता है कि मदन मोहन जी सनातन गोस्वामी जी की कुटिया में एक बच्चे के रूप में रहते थे। वह प्रतिदिन एक नया व्यंजन खाने के लिए लालायित रहते थे। इसलिए उन्हें चटोरी मदन मोहन जी कहा जाता है।