मानगढ़ धाम
हाल ही में हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा मानगढ़ धाम जो राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में स्थित है। इस धाम को “राष्ट्रीय स्मारक” घोषित कर दिया गया है। इस धाम की राष्ट्रीय स्मारक की घोषणा “मानगढ़ धाम की गौरव गाथा” कार्यक्रम के दौरान की गई है। प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा इस धाम की प्रशंसा और आदिवासियों के बलिदान का प्रतीक बताते हुए इस पट्टी व्यक्त की।
साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा भारत के इतिहास, भविष्य और वर्तमान पर चर्चा करते हुए कहा, की आदिवासी समुदाय के बिना भारत का इतिहास और भविष्य अधूरा है। और मानगढ़ धाम एक ऐसा प्रतिबिंब दिखाता है, कि जिसमें आदिवासियों के वीरों का तप, त्याग, तपस्या और देशभक्ति दिखाई पड़ती है। यह एक साझी विरासत है। जिसमें राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र शामिल है।
राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की प्रणाली
भारत में राष्ट्रीय स्मारक “प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958” के द्वारा लागू होता है। इसमें इसमें किसी गुफा, पत्थर की मूर्ति ,शिलालेख आदि को शामिल किया जाता है। जो 100 वर्ष से अधिक पुरानी है।
इसके द्वारा राष्ट्रीय महत्व की प्राचीन स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा नामित किया जाता है। यह संस्था एक नोडल अथॉरिटी के रूप में कार्य करता है। राष्ट्रीय स्मारकों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, और तमिलनाडु जैसे राज्यों में मिलती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, संस्कृति मंत्रालय के द्वारा क्रियान्वित होती है।
मानगढ़ धाम क्यों प्रसिद्ध है?
ऐसा बताया जाता है, कि मानगढ़ धाम आदिवासियों की नरसंहार को लेकर सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। प्राचीन कथाओं के आधार पर बताया जाता है, कि 17 नवंबर 1913 राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित, यह मानगढ़ की पहाड़ी पर एक घटना घटित हुई थी। जिसमें लगभग 1500 भील आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था। तथा ब्रिटिश पुलिस के द्वारा गोविंद गुरु को गिरफ्तार कर लिया गया। और इसके बाद उन्हें फांसी की सजा न देकर आजीवन कारावास की सजा दी गई। 1923 में गोविंद गुरु जब जेल से मुक्त हुए, तब वे “भील सेवा सदन” संस्था बनाकर कार्य करने लगे तथा जिस जगह उन्होंने समाधि ली थी। उसी जगह को मानगढ़ धाम के नाम से जाना जाता है। इस दुख भरी घटना को लेकर ही मानगढ़ धाम प्रचलित हुआ। मानगढ़ धाम बांसवाड़ा जिले में आनंदपुरी से कुछ दूरी पर स्थित है। यह स्थान गुरु भक्ति और देशभक्ति का जीता जागता प्रतीक के रूप में है। इसमें गुरु का जन्मदिन मनाने के लिए हजारों गुरुभक्तों को ब्रिटिश की सेना ने बेरहमी से मार दिया था। इसे ही मानगढ़ नरसंहार का नाम दिया जाता है। उस समय भील आदिवासियों का स्थानीय शामांत, रजवाड़ा तथा अंग्रेजों के द्वारा इनकी अशिक्षित, सरलता और गरीबी का लाभ उठाकर इनका भरपूर शोषण किया था। ऐसा बताया जाता है कि ये घटना जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी लगभग 6 वर्ष पुरानी थी। इसी कारण से इस स्थान को आदिवासी “जलियांवाला” भी कहते हैं। यह गुजरात–राजस्थान की सीमा पर एक बड़ी संख्या का भीम जनजातीय आबादी वाला क्षेत्र है।
भील आदिवासियों से जुडी जानकारी
भील शब्द “वील” से जुड़ा है, जिसका अर्थ “धनुष” द्रविड़ भाषा में होता है। इसी आधार पर भील समुदाय के लोग धनुष की कला में निपुण होते हैं। इसीलिए इन समुदाय के लोगों को “भारत का धनुष पुरुष” भी कहा जाता है। यह भील आदिवासी समुदाय पूरे भारत में पश्चिम से गुजरात से लेकर त्रिपुरा तक इनका निवास क्षेत्र मिलता है। भील समुदाय के लोगों का “घूमर” इनका पारंपरिक लोक नृत्य है। गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों में भील आदिवासी समुदाय की संख्या सबसे अधिक मिलती है।