तिरुपति भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में एक विशिष्ट भूमिका रखता है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले मे हैं।
तिरुपति में प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री दर्शन करने आते हैं। यह समुंद्र स्थल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमाला पहाड़ी पर बने एक श्री वेंकटेश्वर मंदिर यहां का सबसे प्रसिद्ध एवं आकर्षक तीर्थ स्थल है।
इस मंदिर की भारतीय वस्तु कला और शिल्प कारों का अद्भुत कार्य उदाहरण के तौर पर प्रदर्शित है। तिरुपति का वातावरण आस्था एवं श्रद्धा से परिपूर्ण है। जो श्रद्धालुओं के मन को असीम शांति प्रदान करता है।
श्री वेंकटेश्वर मंदिर के गर्भग्रह में विष्णु भगवान साक्षात विराजमान है। मंदिर के प्रांगण में अति सुंदर अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर भी बने हैं जो मंदिर की सुंदरता को और अधिक विस्तृत करते हैं।
कहा जाता है कि मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव समुदाय के द्वारा की गई है। यह समुदाय समानता और प्रेम के सिद्धांतों को अग्रसारित करता है।
मंदिर के दर्शन करने के लिए अनेक जगहों से तथा बैंकों से विशिष्ट पर्ची मिलती है। जिस पर्ची के आधार पर आप भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर सकते हैं।
श्री वेंकटेश्वर मंदिर की मान्यताएं
• मंदिर के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर बालाजी की बाल रूप में विराजमान है। जिससे बालाजी की ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा प्रचलित है। क्योंकि बताया जाता है। कि बाल्यकाल में बालाजी की ठोड़ी से रक्त आया था।
• भगवान श्री बालाजी के केस रेशमी है। जो हमेशा ताजा रहते हैं।
• मंदिर से कुछ दूरी पर एक गांव है। जिसकी दूरी 23 किलोमीटर है। इस गांव में बाहरी किसी भी व्यक्ति को प्रवेश करना निषेध है। वहां से लाए गए फूल एवं अन्य वस्तुओं को भगवान के चरणों में चढ़ाया जाता है।
• बालाजी को प्रतिदिन साड़ी और धोती से सजाया जाता है।
• मंदिर के गर्भगृह में चढ़ाई गई किसी भी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता। मंदिर के पीछे एक जलकुंड है। सभी वस्तुओं को उस में विसर्जन किया जाता है।
• ऐसा बताया जाता है कि बालाजी की पीठ को कितना भी साफ करने पर गीलापन फिर भी रहता है। तथा कान लगाने पर समुंद्र घोष की ध्वनि सुनाई देती है।
• गर्भ ग्रह में ज्वलित दीपक कभी नहीं बुझता। वह कितने हजारों सालों से जल रहा है। इसका कोई अनुमान नहीं हैं।
यह जाने के लिए हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग की उचित व्यवस्था है।