बद्रीनाथ मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। जिसे बद्रीनाथ अथवा बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यह चमोली जिले के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। इस मंदिर में हिंदुओं के पूजनीय देवता विष्णु जी की पूजा की जाती है। यह मंदिर हिंदू धर्म के 4 पवित्र धामों में से एक प्राचीन धाम है। यह मंदिर है हिमालय की पर्वतमाला की ऊंची गोद में एवं गढवाल क्षेत्र में स्थित है। हिमालय क्षेत्र की मौसमी दशाओं के कारण यह मंदिर वर्ष के कुछ सीमित अवधि के लिए ही खुलता है यह अप्रैल के अंत से लेकर नवंबर की शुरुआत तक श्रद्धालुओं के लिए खुला होता है। ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर के अंदर जो मूर्ति स्थापित है, उसे आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा कुंड से निकालकर इस मंदिर में विराजमान किया गया। बद्रीनाथ मंदिर का उल्लेख विष्णु पुराण, महाभारत और स्कंद प्राण इत्यादि ग्रंथों में भी मिलता है। विष्णु भगवान को ही समर्पित बद्रीनाथ मंदिर के समीप अन्य मंदिर भी स्थापित है। योगध्यान -बद्री, भविष्य -बद्री, वृद्ध- बद्री और आदि- बद्री के समूह को “पंच- बद्री” के रूप में नाम दिया जाता है।बद्रीनाथ मंदिर ऋषिकेश से लगभग 214 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वर्तमान की सुविधा को देखते हुए *चार धाम मार्ग* तथा *चारधाम रेलवे अनेक प्रकार की योजनाएं और कार्य चल रहा है।
पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर बद्रीनाथ धाम एक बेर के वृक्ष के कारण पड़ा, क्योंकि यहां पहले बद्री (बेर) के घने वन पाए जाते थे। पर आज के समय ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता है।

इस स्थान से संबंधित प्रचलित कथाएं
1. विष्णु पुराण के आधार पर इक्कठा प्रचलित है, जिसमें बताया गया है कि धर्म जिनके दो पुत्र थे। नर और नारायण, धर्म के विस्तार के लिए तपस्या के लिए इनके द्वारा स्थान की खोज प्रारंभ की,जब ये तपस्या के लिए स्थान की खोज कर रहे थे ।तब इन्होंने वृद्ध –बद्री, योग – बद्री और भविष्य– बद्री सभी स्थानों से घूमने के बाद अंत में अलकनंदा नदी के पास विचित्र शांति अनुभव की जिससे इस यंत्र को बद्री विशाल का नाम दिया गया।
2. ऐसा बताया जाता है कि व्यास जी के द्वारा महाभारत की रचना इसी स्थान पर की गई। और नर और नारायण का मानव योनि में अगला जन्म अर्जुन और श्री कृष्ण के रूप में धरती पर हुआ। महाभारत के समय कि यह मान्यता भी है कि पांडवों ने अपने पित्रों को पिंडदान इसी स्थान पर दिया गया। इस कारण से ही आज भी। इस स्थान पर अधिकतर तीर्थयात्री के द्वारा अपने पित्रों की आत्म शांति के लिए पिंडदान देने का रिवाज आज भी है।
बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास
- बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना को लेकर अनेक मानयता प्रचलित है बताया जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने परमार के शासक राजा कनक पाल की सहायता लेकर सभी बौद्ध समाज के लोगों को निष्कासित कर इस क्षेत्र को खाली करा लिया। और इस मंदिर की स्थापना कराई गई।
- ब्रिटिश काल के समय जब देश में गुलामी हर तरफ फैली हुई थी। तब बद्रीनाथ मंदिर का शासन भी ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया था। जब भी बताया जाता है कि मंदिर का प्रबंधन समिति के अध्यक्ष गढ़वाल के राजा को ही दिया गया था।
- हिमालय की गोद में बसे इस मंदिर, हिमालय द्वारा की जाने वाली हलचल जैसे हिमस्खलन,भूकंप इत्यादि से भी इस मंदिर को बहुत नुकसान हुई है। समय-समय पर इस मंदिर को पुनः निर्माण किया गया है। उत्तराखंड राज्य सरकार के द्वारा अवैध अतिक्रमण को रोकने के लिए बद्रीनाथ मंदिर के आसपास के क्षेत्र को नो– कंस्ट्रक्शन –जोन घोषित कर दिया गया।
- मंदिर के आसपास के क्षेत्र को भी बदरीनाथ का नाम ही दिया जाता है। इस स्थान की भौगोलिक स्थिति के आधार पर इसे गड़वाल हिमालय,महान हिमालय अथवा मध्य हिमालय का नाम भी दिया जाता है।
- मंदिर की कुछ ही दूरी पर अलकनंदा और उसकी सहायक नदी ऋषि गंगा का पवित्र संगम स्थान भी स्थित है।
- मंदिर के ठीक नीचे एक तप्त कुंड मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इसका पानी सल्फर युक्त होने के कारण औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। तप्त कुंड का तापमान 120 डिग्री सेल्सियस तक भी मापा गया है। यह एक गर्म चश्मा है, जबकि बाहरी तापमान 18डिग्री सेल्सियस के नीचे रहता है। मंदिर के आस पास पानी के दो अन्य तलाब स्थित है जीने नारद कुंड और सूर्य कुंड का नाम दिया जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
★बद्रीनाथ मंदिर भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित है। बद्रीनाथ मंदिर भारत के हिंदू धर्म के लोकप्रिय एवं पवित्र मंदिर माने जाने चार धामों में से एक विचित्र दर्जा रखता है। इसके अन्य धाम रामेश्वरम, पूरी और द्वारका में स्थित है। हिंदू धर्म में ऐसा बताया जाता है कि जो व्यक्ति इन चारों धाम की यात्रा अपनी जीवन काल में पूर्ण करता है। तो वह मोक्षी की प्राप्ति करता है।
★बद्रीनाथ मंदिर में माता मूर्ति का एक मेला का आयोजन किया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि यह मेला का आयोजन गंगा नदी के प्रथ्वी पर आगमन की खुशी उपलक्ष में मनाया जाता है।
बदरीनाथ जाने के मार्ग
- बद्रीनाथ जाने के लिए मुख्य तीन रास्ते है। पहले मुख्यता हरिद्वार से होते हुए केदारनाथ की यात्रा को पूरा किया जाता था। उस समय इसी यात्रा को संपूर्ण करने में महीनों का समय लग जाता था। परन्तु आज की समय बेहतर सड़क मार्ग उपलब्ध होने के कारण हफ्ते भर से कम समय में यह यात्रा पूर्ण की जा सकती है।
- मंदिर के प्रशासन को उचित सुविधा प्रदान करने की लिए एक टोकन प्रणाली प्रारंभ की गई है। सभी श्रद्धालुओं को मंदिरों के प्रवेश के समय अपनी पहचान का प्रमाण पत्र साथ होना अनिवार्य है। सभी भक्तों को गर्भ ग्रह का दौरा करने के लिए 10 से 20 सेकंड का समय दिया जाता है।
- बद्रीनाथ हिंदू धर्म के लोगों के लिए एक पावन, पवित्र और एक श्रद्धा पूर्ण धाम है। जिसमें देश के हर कोने से लोग केदारनाथ की यात्रा करने के लिए प्रत्येक वर्ष आते हैं। यह स्थान में बर्फ की मोटी पर से गिरा होने के कारण यह मंदिर के प्रवेश द्वार 6 माह के लिए खुले होते हैं, क्योंकि अन्य छह माह में बर्फ की मात्रा अत्यधिक होती है। जिन कारणों से केदारनाथ की यात्रा करना सुलभ न होने के कारण केदारनाथ मंदिर को 6 माह के लिए बंद कर दिया जाता है।