आंख को लगभग 8 चरणों में अध्ययन किया जाता है।
1. कॉर्निया
2. स्वेत पटल
3. रक्त पटल
4. रेटीना
5. आइरिस और पुतली
6. सिलिअरी मांसपेशी
7. लेंस
8. जलीय द्रव और कचाव द्रव
1. आंख की कॉर्निया– कॉर्निया हमारे आंख की ठीक सामने की पारदर्शी परत के रूप में होती है तथा यह आंख में मुख्य लेंस की भांति कार्य करती है।
कॉर्निया का मुख्य कार्य आंख पर पड़ने वाले प्रकाश को मोड़ देना होता है। तथा रेटिना पर प्रतिबिंब बनाने में मदद करना होता है।
नोट– हमारी आंख की कॉर्निया परतदार आकार में होती है जिसमें 3+1 परत पाई जाती है।
जिसमें 3 परत की खोज पहले की जा चुकी है, लेकिन चौथी परत की खोज भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉक्टर हेमेंद्र सिंह दुआ ने की थी। इसी कारण से इसे दुआ परत कहा जाता है।
कॉर्निया से संबंधित प्रमुख बिंदु
# कॉर्निया पूरे शरीर का एकमात्र ऐसा भाग है।
जिसमें रक्त एवं रक्त कोशिकाएं नहीं पाई जाती हैं। पर इसके बावजूद भी यह एक जीवित भाग है। कॉर्निया का जीवन जलीय द्रव से प्राप्त o2/h2o द्वारा विसरण पद्धति से चलता है।
नोट–आंख के प्रत्यारोपण के दौरान कॉर्निया का ही प्रत्यारोपण होता है।
कॉर्निया में यदि कोई समस्या आ जाती है। तो इससे नेत्र में दृष्टिवैषम्य की समस्या होती है।
2. श्वेत पटेल– श्वेत पटेल हमारी आंख का बाहरी सुरक्षा पटल होता है। जोकि रेशेदार संरचना युक्त होता है। जब हमारी आंखों में धूल, मिट्टी, हानिकारक कीट प्रवेश करते हैं। तो श्वेत पटेल इनसे आंख की सुरक्षा करती है।
नोट–कोलाजन प्रोटीन के कारण हमारी श्वेत पटल का रंग सफेद होता है,और यह रेशेदार संरचना वाले हो जाती है।
3. रक्त पटल– यह आंख की दूसरी परत तथा रेटीना के ठीक ऊपर की परत होती है, तथा इसमें अधिक संख्या में पतली रक्त नलिका पाई जाती है। यह हमारी आंख पर पडने वाले प्रकाश के परावर्तन में कमी लाती हैं। जिससे हमारी रेटिना पर स्पष्ट प्रतिबिंब बन पाता है।
4. रेटीना– यह हमारी आंख का सबसे आंतरिक परत होती है तथा इसी पर प्रतिबिंब का निर्माण होता है। इस पर प्रतिबिंब वास्तविक व उल्टा बनता है। लेकिन मस्तिष्क द्वारा इसे सीधा दिखाया जाता है।
नोट–हमारी रेटीना दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनी होती है।
1.Cone cell–यह कोशिका दिन के समय प्रकाश में सक्रिय होती है। जो रंगीन (नीला, हरा, लाल) रंग दिखाने में की क्षमता रखती है।
जब यह कोशिका खराब हो जाती हैं तो कलर ब्लाइंडनेस की समस्या हो जाती है।
#Color blindness (वर्णांधता)–यह समस्या तब होती है जब Cone cell सही से कार्य नहीं करती है इस समस्या में रंगों की सही पहचान नहीं हो पाती है। यह एक अनुवांशिक समस्या है।
2.Rod cell–यह कोशिका रात्रि या मंद मंद प्रकाश में सक्रिय होती है। यह काला और सफेद रंग दिखाने की क्षमता रखती है।
जब यह कोशिका (cell) खराब हो जाती है तो रतौंधी जैसी बीमारी कि समस्या होती है।
# Night blindness (रतौंधी)–इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति को शाम या अंधेरे होने पर स्पष्ट दिखाई नहीं देता है, तथा सही रंग भी नजर नहीं आते हैं, धुंधला दिखाई देता है। यह समस्या विटामिन ए की कमी के कारण होती है।
नोट– पपीता, कद्दू,आम,गाजर, मछली का तेल ,मछली आदि सभी विटामिन ए के अच्छे स्रोत है।
Facts
1. मुर्गा की आंखों में केवल cone cell होती है।इसीलिए इनको दिन के समय स्पष्ट दिखाई देता है। परंतु अंधेरा होने पर इनको दिखाई देना बंद हो जाता है। इसी कारण से जब सुबह का समय होता है। तो इनकी cone cell एक्टिव हो जाती है, और इन्हें दिखाई देना लगता है। इसी कारण से मुर्गा सुबह होने पर बोलने लगते है।
2. उल्लू की आंखें में केवल Rod cell होती है। Cone cell न होने के कारण दिन के समय स्पष्ट नहीं दिखाई देता है। Rod cell की उपस्थिति के कारण इन्हें रात्रि में दिखाई देता है।
5. पुतली और आइरिस–हमारी कॉर्निया ठीक पीछे एक अपारदर्शी पर्दा पाया जाता है। जिसे कहते हैं पुतली और आइरिस कहते हैं।
इसका मुख्य कार्य आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा का निर्धारण करना है।
# प्रकाश की मात्रा कम होने पर पुतली का आकार बड़ा हो जाता है। तथा आयरिश पीछे हट जाती है, और छोटा हो जाती है।
# प्रकाश की मात्रा अधिक होने पर पुतली का आकार छोटा हो जाता है। तथा आयरिश बड़ा हो जाती है।
नोट–आंखों की रंग का निर्धारण आइरिस के द्वारा होता है।
6. सिलिअरी मांसपेशी–यह मांसपेशियां आंखों के लेंस के पास पाई जाती है और लेंस को संतुलित रखते हैं तथा इससे वस्तु के प्रतिबिंब बनने में आसानी होती है।
नोट–युवा अवस्था में यह मांसपेशियों मजबूत और सक्रिय होती है। जिस कारण से आंखों को सुंदर व सुदृढ़ भी बनाती है तथा बुढ़ापे में यह मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं। जिससे लेंस सही कार्य नहीं कर पाता है।
7. लेंस (lans)–हमारी आंखों का लेंस उभयोत्तल होता है। इसका मुख्य कार्य प्रकाश को मोड़ कर रेटीना पर प्रतिबिंब बनाना होता है।
# उम्र बढ़ने के साथ-साथ लेंस चपटा और धुंधला हो जाता है। और स्पष्ट प्रतिबिंब नहीं बन पाता। जिससे स्पष्ट दिखाई नहीं देता है। इस समस्या को मोतियाबिंद कहते हैं।
8. जलीय द्रव और कचाव द्रव
# जलीय द्रव–जलीय द्रव हमारी कॉर्निया और लेंस के बीच पाए जाता है। एक विशेष पारदर्शी द्रव है। जिसमें लगभग 98 प्रतिशत जल होता है। बाकी मात्रा में इम्यूनो ग्लोबिन प्रोटीन व अन्य कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ 2% जाते हैं।
# कचाव द्रव–यह लेंस और रेटिना के बीच अपारदर्शी व गाढ़ा द्रव है। यह द्रव उच्च अपवर्तनांक युक्त होता है। इसका कार्य स्पष्ट प्रतिदिन बनवाना होता है।