हमारे आसपास मौजूद घी, मक्खन चर्बी, सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, जैतून, तिल, सूर्यमुखी, मछली का तेल, नारियल का तेल, ताड़ का तेल वस्तुओं (ठोस व द्रव रूप में) इन्हें वसा कहते हैं।
वसा (रसायनिक दृष्टिकोण)
वसा में हाइड्रोजन की मात्रा अधिक होती है तथा हाइड्रोजन का कैलोरिक मान भी अधिक होता है। इसलिए वसा से अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसी कारण से यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत माना जाता है।
1 ग्राम वसा= 9.2 कैलोरी ऊर्जा
वसा निर्माण की प्रक्रिया को एस्टिफिकेशन कहा जाता है।
वसीयअम्ल+ ग्लिसरोल = ट्राई ग्लिसराइड (इसे ही वसा कहते हैं)
नोट–वसा जल में घुलनशील होती है। तथा पेट्रोल, इथर, बेंजीन, डिटर्जेंट आदि में घुलनशील होता है। इसी कारण से वसा में सनी वस्तु को इन सब से साफ कर पाते हैं।
नोट– मानव अपनी उर्जा का लगभग (30 से 35%) भाग वसा से प्राप्त करता है।
नोट–जब कोई वायरस हमारे हाथों पर लग जाता है। तब वह सामान्य पानी से नहीं साफ होता है। क्योंकि वायरस के ऊपर वसा की परत जम जाती है। फिर हम वायरस की बाहरी परत को साफ करने के लिए सैनिटाइजर या डिटर्जेंट का इस्तेमाल करते हैं।
वसा के प्रकार (Type of fat)
1. संतृप्त वसा (saturated fat)
2. असंतृप्त वसा (unsaturated fat)
3. परासंतृप्त वसा (trans fat)
1. संतृप्त वसा (saturated fat)– यह वसा सामान्य तापमान 20 से 22 डिग्री सेल्सियस (room temperature) पर यह ठोस अवस्था में होती है।
# रासायनिक रूप में इसमें पर्याप्त मात्रा में कार्बन(C) हाइड्रोजन(H) और ऑक्सीजन(O) मौजूद होते हैं.
# कार्बन व कार्बन के मध्य एकल बंध होता है।
उदारण–घी, मक्खन और चर्बी।
वसा प्राप्त करने के प्राक्रतिक स्रोत
सभी जंतु वसा में (लगभग जंतु)
अपवाद– वनस्पति तेल (वसा)= नारियल तेल या ताड़ का तेल।
नोट—अधिक मात्रा में और लंबे सेवन तक हमें संतृप्त वसा का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसी दशा में LDL कोलेस्ट्रॉल की वृद्धि हो जाती है। और इससे मोटापा, हृदय संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है।
नोट —सामान्य मात्रा में हमें संतृप्त वसा का सेवन करना चाहिए। क्योंकि हमारे मस्तिष्क अथवा तंत्र की तंत्रिकाओं के लिए आवश्यक होता है।
2.असंतृप्त वसा (unsaturated fat)
सामान्य तापमान पर यह द्रव अवस्था या अर्द्ध ठोस अवस्था में होती है। रासायनिक रूप में इन वसा में हाइड्रोजन तत्व की कमी पाई जाती है। हाइड्रोजन तत्व की कमी होने के कारण अणुओं के मध्य दूरी बढ़ जाती है। इसीलिए यह द्रव अवस्था में हो जाती है।
नोट–इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि संतृप्त वसा की तुलना में असंतृप्त वसा से कम ऊर्जा प्राप्त होती है।
प्राप्ति करने के स्त्रोत– वनस्पति वसा या तेल । जैसे सरसों का तेल, जैतून, सूरजमुखी, तिल, सोयाबीन तेल, मूंगफली तेल इत्यादि से हमें असंतृप्त वसा प्राप्त होती है।
अपवाद– जंतु वसा और मछली का तेल।
नोट–असंतृप्त वसा में कार्बन कार्बन के मध्य एकल बंध व डबल बंध दोनों होते हैं।
नोट– हमारे दैनिक जीवन में असंतृप्त वसा का सेवन अपेक्षाकृत ज्यादा हानिकारक नहीं होता। परंतु हमें लगातार एक ही प्रकार की असंतृप्त वसा का सेवन नहीं करना चाहिए।
# सबसे सुरक्षित तेल सूरजमुखी तेल होता है। इसका सेवन करने के लिए हृदय रोगियों को भी सलाह दी जाती है।
3. परासंतृप्त वसा (trans fat)– यह वसा वैज्ञानिक द्वारा बनाई जाती है। जिसे डालडा घी (वनस्पति घी) कहा जाता है।
नोट–अधिक मात्रा में व लंबे समय तक परासंतृप्त वसा का सेवन करने से एथेरोस्क्लेरोसिस नमक बीमारी हो जाती हैं। इससे हृदय की धमनियों में वसा का जमाव हो जाता है। जिस रक्त का प्रवाह रुक जाता है। इससे हार्ट अटैक की समस्या हो सकती है।
नोट— 1 जनवरी 2012 से भारतीय खाद्य संरक्षण तथा मानव प्राधिकरण के द्वारा खाद्य उत्पादकों में ट्रांस फैट एसिड की मात्रा 2% निर्धारित की गई है। यह मात्रा 2021 में 3% थी।
नोट— विश्व भर में इसके सेवन से बहुत अधिक मात्रा में मौतें हो चुकी हैं।
इसके विनाशकारी प्रभाव को देखकर डब्ल्यूएचओ (WHO) की अनु मंशा है कि कुल ऊर्जा का इससे 0.1 प्रतिशत या इससे भी कम ट्रांस फैट द्वारा किया जाना चाहिए। इसकी मात्रा को कम करने के लिए REPLACE प्रोग्राम भी चलाया गया है।
RE (REVIEW)
P( PROMATE)
L(LOGISLATE)
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