वृंदावन वह स्थान है। जहां श्री कृष्ण जी ग्वाल बालों के साथ गाय चराने के लिए आते थे। तथा अपनी बांसुरी बजा कर उस की मधुर आवाज से पूरे जंगल को महकाए रखते थे। वृंदावन धाम तीन तरफ से यमुना नदी से घिरा है क्योंकि अपने आप में एक बहुत सुंदर तीर्थ स्थल है। जहां पर देश-विदेश के श्रद्धालु श्री कृष्ण जी के इस पावन धाम पर दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। इसकी मान्यता बहुत अधिक मानी जाती है। यह वही स्थान है जहां पर श्री कृष्ण जी गोपियों के साथ रास रचाते थे। अपनी मधुर बांसुरी से सबके मन को मोहित करते थे।
वृंदावन में श्री कृष्ण जी से जुड़े कई तीर्थ स्थान है। जहां पर देश-विदेश से लोग का आगमन हमेशा लगा रहता है। वृंदावन जाने के लिए दिल्ली से सीधा हाईवे वृंदावन के लिए जाता है। वृंदावन जाने के लिए दिल्ली से ट्रेन की सुविधा, बस की सुविधा आसानी से उपलब्ध होती है। जिसमें लगभग 6 से 7 घंटे में हम वृंदावन पहुंच जाते हैं। आज वृंदावन धाम की आधुनिक स्वरूप देखने को मिलता है। जिससे हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए, कि वृंदावन में पहले जैसी बात नहीं है। यह हमेशा हमारे ध्यान में रहे कि वृंदावन प्रेम की भूमि है। जो अपने तौर पर प्रेम भक्ति को परिभाषित करती है। प्रेम के स्वरूप को हमें समझाती है। भविष्य पुराण में वृंदावन की परिक्रमा पांच कोस की बताई गई है। एवं बरा संहिता में वृंदावन की परिक्रमा एक योजन की बताई गई है। वर्तमान में वृंदावन की परिक्रमा लगभग 3 कोस की मानी जाती है। अगर हम देखें तो यह 10 किलोमीटर की परिक्रमा होती है। जिसे हम 2 या 3 घंटे में, या अपनी क्षमता के अनुसार पूरी कर सकते हैं।
वृंदावन की परिक्रमा उसकी परिधि से कहीं से भी शुरुआत की जा सकती है। जहां से हम परिक्रमा को शुरुआत करते हैं। उसी स्थान पर वापस आने पर परिक्रमा पूरी मानी जाती है। जब हम दिल्ली से आ रहे होते हैं, तो यह परिक्रमा इस्कॉन मंदिर (अंग्रेजों का मंदिर भी कहा जाता है) के पास से शुरुआत हो जाती है। वृंदावन में जितने भी मंदिर है। उनसे श्री कृष्ण जी कहानी जुड़ी हुई है। सभी का श्री कृष्ण जी से नाता है। जब हम परिक्रमा शुरूवात करते हैं, तो परिक्रमा करते समय में आपको बहुत से मंदिर, व पूजनीय स्थल आपको मिलेंगे। उन सभी के दर्शन करते हुए परिक्रमा में धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहना चाहिए। परिक्रमा करते समय आपको ऐसा अनुभव होता है। जैसे हम श्री कृष्ण जी के मनो भक्ति में आपका मन विलीन हो रहा हो। आपको बेहद शांति और प्रेम से भरे हुए मन की अनुभूति होती है। यह श्री कृष्ण जी की महिमा का ही परिणाम है। जितने भी तीर्थ स्थल आपको परिक्रमा के दौरान मिलेंगे, उन सभी मंदिरों की स्थापना श्री कृष्ण जी की लीला को ध्यान में रखते हुए की गया है।
जब हम वृंदावन की परिक्रमा शुरू करते हैं, तो शुरुआत में कालियादेह घाट के नाम से स्थल मिलेगा। जिसमें यह दिखाया गया है। श्री कृष्ण जी कालिया नाग के फन पर बैठकर नृत्य कर रहे हैं और कालिया नाग की पत्नी व सभी दासिया श्री कृष्ण जी से माफी मांगकर क्षमा याचना कर क्षमा याचना कर रही हैं। इसके बाद जब हम आगे की ओर बढ़ते हैं। तो कालियादेह घाट के समीप ही एक प्राचीन व्रक्ष आपको दिखाई देगा।
यह वही वृक्ष है जहां से श्री कृष्ण जी ने यमुना मां के अंदर छलांग लगाई थी। इस वृक्ष के नीचे श्री कृष्ण जी के पद चिन्ह भी अंकित है। इसकी जब हम आगे चलते हैं, तो हमें प्राचीन मदन मोहन मंदिर के दर्शन होते हैं। जो द्वादश टीले पर बनाए हैं। मुगलों के आक्रमण के समय इस मंदिर की मूल प्रतिमा को राजस्थान के करौली जिले में ले जाया गया। आज प्राचीन मदन मोहन मंदिर की प्राचीन मूल प्रतिमा करौली जिले में स्थित है। आज भी इस मंदिर में उनके प्रतिरूप की पूजा की जाती है। वृंदावन में कई मंदिर और स्थान ऐसे हैं। जो मुगलों के समय काल में क्षतिग्रस्त हुए और आज भी खंडों के रूप में उपस्थित है। इनमें से जैसे कि जुगल किशोर मंदिर आदि है। जब हम परिक्रमा करते समय हमें अपने मोबाइल, पर्स ,चश्मा इत्यादि को बंदरों से बचाकर रखें। क्योंकि बंदर इन सामानों को छीन कर भाग जाते हैं। आगे बढ़ने पर परिक्रमा मार्ग मे आगे बढ़ने पर इमली तला घाट पड़ता है। इसके बाद श्रंगार घाट आदि के दर्शन करते हुए हम परिक्रमा के मार्ग में आगे बढ़ते जाते हैं। इससे आगे कुछ दूरी चले पर चीर घाट पड़ेगा। चीर घाट पर ही एक कदम का पेड़ है, ऐसा बताया जाता है कि यह वही वृक्ष है, जहां से जहां से भगवान श्री कृष्ण जी ने गोपियों के वस्त्र चुरा कर इस पेड़ पर टांग दिया था। आगे आने पर यमुना माता के दर्शन होंगे। यमुना के इस घाट काफी भीड़ देखने को मिलती है। इसकी समीप ही कैसी घाट भी है। परिक्रमा के मार्ग में छोटी बड़ी दुकानें देखने को मिलती रहेगी। परिक्रमा मार्ग पर आगे हम गोपीनाथ मंदिर से होते हुए आगे बढ़ते रहेंगे। जब गोपीनाथ मंदिर से होते हुए कुछ आगे बढ़ने पर है। हमें कैसी घाट पहुंगे कैसी घाट की पास में ही भ्रमण घाट स्थित है। जिसमें शिवजी भगवान के दर्शन होंगे। भगवान भोलेनाथ जी का मंदिर भी आपको वहां मिलेगा जिसमें भोले जी गोपी के रूप में उपस्थित है। कैसी घाट पर बताया जाता है, कि श्री कृष्ण जी ने कैसी नाम राक्षस का वध किया था। जो भगवान श्री कृष्ण जी की गाय में घोड़े का रूप धारण कर शामिल हो गया था। यहां आप नौका विहार का आनद ले सकते हैं। जो काफ़ी किफायत दाम पर कैसी घाट के सम्पूर्ण दर्शन कराते हैं। इन सभी घाटो पर संध्या के समय अंतराल आरती होती है। इसमें शामिल होने के लिए बहुत सी श्रद्धालु संध्या के समय यही मिलेंगे।
परिक्रमा के अंतराल कैसी घाट से होते हुए अब हम सुदामा कुटी मार्ग से होते हुए आगे बढ़ेंगे। आगे रास्ते में चलते हुए आपको बहुत से साधु संत भी मिलेंगे। जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राधा कृष्ण जी की भक्ति के नाम पर कर दिया है ।
प्राचीन साथ संतो के द्वारा परिक्रमा पर चलती हुए, बड़े ही कोमल मन से राधा राधा नाम जपते हुए पूरी आस्था के साथ परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा के दौरान हमारे द्वारा किसी भी व्यक्ति का अहित न हो। किसका अपमान न हो इस बात का ध्यान करते हुए परिक्रमा में आगे बढ़ते रहना चाहिए।