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श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी (उड़ीसा) की यात्रा और इतिहास। ( Shree Jagannath Mandir Puri )

by LotsDiary
November 28, 2022
in इतिहास, तीर्थयात्रा, भारत की सुंदरता, राज्य, राष्ट्रीय, शिक्षा, संस्कृति
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।।ॐ नमोः नारायणाय। ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय।।

ऐसा बताया जाता है कि विष्णु भगवान जब चारों धामों पर बसे अपने स्वरूप की यात्रा करने के लिए जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बर्फ से ढके बने अपने बद्रीनाथ धाम में स्नान करते हैं। पश्चिम में स्थित गुजरात के द्वारिका में अपने वस्त्र धारण करते हैं। पुरी में बसे जगन्नाथ धाम में आकर भोजन करते हैं और दक्षिण में बसे रामेश्‍वरम धाम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण जी पुरी में आकर निवास करने लगे और इस तरह बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ धाम। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। माना जाता है कि उन के दर्शन करने से ही मानव के जीवन की सभी पीड़ा समाप्त हो जाती है। यह एक अलौकिक मंदिर है।

Shree jagannath mandir
Image source: Bijoy Gochhayat

श्री जगन्नाथ यात्रा

विख्यात चारों धामों में से एक धाम जगन्नाथ जी जो पुरी जिले के ओडिशा प्रदेश में स्थित था। इसलिए हजार श्रद्धालु हजारों इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं। पूरी दुनिया में जगन्नाथ मंदिर ही ऐसा मंदिर है, जिसमें केवल हिंदू , सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगो को प्रवेश दिया जाता है। उसके अलावा अन्य किसी भी धर्म के लोगों को अंदर में प्रवेश निषेध होता है 1984 में वर्तमान समय की मौजूद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को भी इस मंदिर में प्रवेश नहीं मिल पाया था। क्योंकि वह पारसी समाज से तालुकात रखते थे। भुवनेश्वर एयरपोर्ट तथा भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से पूरी की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है। जिससे बस तथा कार की सुविधा उपलब्ध है जगन्नाथ मंदिर के पास का रेलवे स्टेशन पुरी रेलवे स्टेशन है। भारत के बड़े शहरों से भुवनेश्वर या पूरी के लिए काफी ट्रेनें उपलब्ध होती है।

जिससे आप जगन्नाथ पुरी मंदिर दर्शन करने के लिए आसानी से आ सकते हैं। पूरी के अंदर मंदिर के आसपास काफी बड़े तथा बड़ी संख्या में धर्मशाला उपलब्ध होती है। जो लगभग 300 से ₹400 मैं आपको अच्छा रूम उपलब्ध हो जाता है। पुरी में रुकने के लिए सबसे अच्छी जगह पूरी ब्रिज के पास बहुत में होटल उपलब्ध होते हैं। जहां पर आपको समुंद्र के पास रहने का बहुत अच्छा अनुभव तथा बहुत सुंदर दृश्य देखने को मिलता है। समुंदर के पास के होटल्स कुछ महंगे होते हैं। लेकिन उन होटल से जो दृश्य दिखाई देता है बड़ा ही रोमांचक होता है। होटल्स के सामने समुद्र की लहरें की आवाज तथा उनसे उठे हुए पानी से बना हुआ दृश्य आपको बहुत शुकून और मन की शीतलता को बनाएं रखता है। इन सभी होटल्स में ऑनलाइन या ऑफलाइन की सुविधा उपलब्ध होती है अगर आप बेहतर सुविधा रखना चाहते हैं तो आपको आने से पहले ही होटल्स को ऑनलाइन बुक कर लेना चाहिए। ताकि आपको और आपकी परिवार को कोई असुविधा ना हो। क्योंकि आने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है जिस कारण से यहां पर होटलों की व्यस्तथा देखने को मिल सकती है। रात हो या दिन किसी भी समय पुरी रेलवे स्टेशन पर मंदिर जाने के लिए या होटल जाने के लिए ऑटो, टेंपो, टैक्सी इत्यादि की सुविधा 24 घंटे उपलब्ध होती है, जिसका लगभग 300 से 350 का किराए में आप अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं। पूरी में जगन्नाथ धाम के अलावा पूरी ब्रिज, पशु अभ्यारण आदि ऐतिहासिक स्थान भी है। जहा पर लोग देश विदेशों से घूमने के लिए आते हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी के अंदर कैमरा, मोबाइल और चमड़े से बनी हुई कोई भी चीज के साथ प्रवेश नहीं दिया जाता है। लेकिन मंदिर के बाहर मोबाइल, जूते का स्टैंड बना हुआ जिसमें आप अपने मोबाइल व शूज जमा कर। दर्शन करने के बाद वहां से पुनः प्राप्त कर सकते हैं।मंदिर में जगन्नाथ जी के दर्शन करने के पश्चात बाए ओर महाप्रभु की महा रसोई जहां पर पुरातत्व स्रोतों से 56 भोग बनाया जाता है तथा भगवान जगन्नाथ जी को चढ़ाया जाता है। इसमें लगभग 800 कर्मचारी लगे रहते हैं। इस प्रसाद को प्रतिदिन भगवान श्री जगन्नाथ जी को चढ़ाया जाता है। इस रसोई को आप ₹10 का टिकट लेकर आराम से देख सकते हैं। मंदिर में प्रवेश से बाए ओर आनंद बाजार मिलेगा। जहां पर महाप्रसाद जो श्री जगन्नाथ जी के भोग के बाद आप को किफायती दामों पर मिलेगा।सभी श्रद्धालुओं इस प्रसाद का पान अवश्य करते हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर को शांतिपूर्ण दर्शन के लिए लगभग 2 से 3 घंटे लग सकते हैं। पुरी में सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों ही बड़ा रोमांचक दृश्य प्रदर्शन करते हैं। पूरी ब्रिज पर शाम के समय बहुत से कलाकार समुंद्र की बालू से बहुत सुंदर आकृतियां बनाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

श्री जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

श्री जगन्नाथ मंदिर का सबसे प्राचीन प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है। ऐसा बताया जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्व वसु ने नीलमाधव स्वरूप में मे पूजा की थी। पुरी मंदिर में कुछ सेवक ऐसे भी हैं जिन्हें देतापति के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर का निर्माण राजा इंद्रदयुम्न ने कराया था। जो मालवा के राजा थे। उनके पिता भारत और माता सुमति थी। राजा इंद्रदयुम्न को जगन्नाथ जी के दर्शन उनके सपने मे हुए थे। इस के बाद राजा इंद्रदयुम्न ने यज्ञ और एक सरोवर बनवाया। एक रात भगवान विष्णु जी राजा उसके सपने में आते हैं और उन्हें बताते हैं कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है जिसे नीलमाधव कहते हैं तुम उस मूर्ति को गुफा से निकालकर एक मंदिर में स्थापित कराओ तब राजा अपने सेवकों से नीलांचल पर्वत की खोज करने के लिए कहता है बताया जाता है कि उनके सेवकों में से एक ब्राह्मण था जिसका नाम विद्यापति था विद्यापति यह सुन रखा था कि एक कबीले के लोगों को जो नीलमाधव कीf पूजा करते हैं और उन्होंने एक मूर्ति को नीलांचल पर्वत में छुपा रखा है उस कबीले के मुखिया विश्ववसु नीलमाधव का उपासक है उसी ने इस मूर्ति को छुपा रखा था चतुर विद्यापति अपनी चतुराई से मुखिया की कबीले के मुखिया की बेटी से विवाह कर लेता है तब वह उसकी बेटी के माध्यम से उस मूर्ति तक पहुंच जाता है ऐसा बताया जाता है कि जब मूर्ति को गुफा से निकालकर मंदिर में स्थापित किया गया तब कबिले का मुखिया जो नीलमाधव का उपासक था उसे बहुत दुख होता है उसके दुख को देखकर भगवान नीलमाधव उसी गुफा में वापस लौट जाते हैं उसके उपरांत राजा से वादा किया कि वह 1 दिन अवश्य वापस लौट कर आएंगे।

कहा जाता है कि राजा के सपने में पुन भगवान आते है जिस मंदिर को राजा द्वारा बनाया गया था उस मंदिर में मूर्ति बनाने के लिए भगवान कहते हैं कि समुद्र में तैरता हुआ पेड़ का टुकड़ा उठा कर लाओ जोकि द्वारका से समुंद्र में तैर कर पूरी आ गया है उस पेड़ के टुकड़े से मूर्ति स्थापित कराओ मूर्ति बनाकर मंदिर में स्थापित करो तब राजा अपने सेवकों से उस मंदिर लिए के उस लकड़ी को टुकड़े को लाने के लिए भेजता है राजा के द्वारा के कहने पर लाखों कारीगरों के द्वारा लाखों कोशिशों के बावजूद लकड़ी से कोई मूर्ति नहीं बना पाता है तब बताया जाता है कि तीनों लोकों के कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा स्वयं एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में अवतरित होते हैं राजा को कहते हैं कि नीलमाधव की मूर्ति बना सकता है लेकिन उसकी एक शर्त है कि वह 21 दिन में मूर्ति बनाएगा अकेला ही मूर्ति को बनाएगा और कोई भी व्यक्ति उस मूर्ति को बनाते वक्त नहीं देखेगा राजा मान लेता है बताया जाता है कि जब वह मूर्ति जब बनाई जा रही थी उस समय छेनी, हथौड़ी की आवाज तो आती रहती थी पर राजा की रानी गुड़िचा अपने आप को नहीं रोक पाती है वह दरवाजे के पास आकर आवाज सुनने की कोशिश करती है तो उस समय कोई आवाज उसे नहीं सुनाई दे रही थी वह घबरा जाती है उसे ऐसा लगने लगता है कि वह बूढ़ा कारीगर मर गया है यह सूचना वह राजा को देती है वह उसकी शर्तों और चेतावनीयों को भूलते हुए राजा कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश देता है जब दरवाजा खुलता है तो बूढ़ा व्यक्ति गायब हो जाता हैं। और मूर्तियां अधूरी रह जाती है जो भगवान नीलमाधव, उनके भाई और बहन तीनों की मूर्तियां के छोटे-छोटे हाथ बन पाते हैं लेकिन टांग नहीं बन पाती है राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर उस अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करा दिया जो आज भी स्थापित है मुख्य मंदिर के आसपास 30 छोट-बड़े मंदिर भी स्थापित किए गए हैं।

 

 

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